JUANDICE HOMEOPATHIC TREATMENT

PostJaundice की  होमियोपैथिक दवा :-


रक्तरस में पित्तरंजक (Billrubin) नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है। इस दशा को कामला या पीलिया (Jaundice) कहते हैं।


पीलिया रोग


वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारणत: लोग पीलिया के नाम से जानते हैं। यह रोग बहुत ही सूक्ष्‍म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पडते हैं, परन्‍तु जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं, लोग इसे पीलिया कहते हैं।
जिन वाइरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्‍यतः पीलिया तीन प्रकार का होता है वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी।
रोग का प्रसार कैसे?
यह रोग ज्‍यादातर ऐसे स्‍थानो पर होता है जहाँ के लोग व्‍यक्तिगत व वातावरणीय सफाई पर कम ध्‍यान देते हैं अथवा बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं देते। भीड-भाड वाले इलाकों में भी यह ज्‍यादा होता है। वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नाए व नान बी एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति के नजदीकी सम्‍पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होतें है पीलिया रोग से पीडित व्‍यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है।
ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नही दिख रहे हों परन्‍तु यदि वे इस रोग से ग्रस्‍त हो तो अन्‍य रोगियो की तरह ही रोग को फैला सकते हैं।
वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून व खून से निर्मित प्रदार्थो के आदान प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा फैलता है। इसमें वह व्‍यक्ति हो देता है उसे भी रोगी बना देता है। यहाँ खून देने वाला रोगी व्‍यक्ति रोग वाहक बन जाता है। बिना उबाली सुई और सिरेंज से इन्‍जेक्‍शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है।
पीलिया रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्ति वायरस, निरोग मनुष्‍य के शरीर में प्रत्‍यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्‍यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहूंच जाते हैं। इससे स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य भी रोग ग्रस्‍त हो जाता है।
रोग कहाँ और कब?
ए प्रकार का पीलिया तथा नान ए व नान बी पीलिया सारे संसार में पाया जाता है। भारत में भी इस रोग की महामारी के रूप में फैलने की घटनायें प्रकाश में आई हैं। हालांकि यह रोग वर्ष में कभी भी हो सकता है परन्‍तु अगस्‍त, सितम्‍बर व अक्‍टूबर महिनों में लोग इस रोग के अधिक शिकार होते हैं। सर्दी शुरू होने पर इसके प्रसार में कमी आ जाती है।
रोग के लक्षण:-
ए प्रकार के पीलिया और नान ए व नान बी तरह के पीलिया रोग की छूत लगने के तीन से छः सप्‍ताह के बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
बी प्रकार के पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) के रोग की छूत के छः सप्‍ताह बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
पीलिया रोग के कारण हैः-
रोगी को बुखार रहना।
भूख न लगना।
चिकनाई वाले भोजन से अरूचि।
जी मिचलाना और कभी कभी उल्टियाँ होना।
सिर में दर्द होना।
सिर के दाहिने भाग में दर्द रहना।
आंख व नाखून का रंग पीला होना।
पेशाब पीला आना।
अत्‍यधिक कमजोरी और थका थका सा लगना
रोग किसे हो सकता है?
यह रोग किसी भी अवस्‍था के व्‍यक्ति को हो सकता है। हाँ, रोग की उग्रता रोगी की अवस्‍था पर जरूर निर्भर करती है। गर्भवती महिला पर इस रोग के लक्षण बहुत ही उग्र होते हैं और उन्‍हे यह ज्‍यादा समय तक कष्‍ट देता है। इसी प्रकार नवजात शिशुओं में भी यह बहुत उग्र होता है तथा जानलेवा भी हो सकता है।
बी प्रकार का वायरल हैपेटाइटिस व्‍यावसायिक खून देने वाले व्‍यक्तियों से खून प्राप्‍त करने वाले व्‍यक्तियों को और मादक दवाओं का सेवन करने वाले एवं अनजान व्‍यक्ति से यौन सम्‍बन्‍धों द्वारा लोगों को ज्‍यादा होता है।
रोग की जटिलताऍं:-
ज्‍यादातार लोगों पर इस रोग का आक्रमण साधारण ही होता है। परन्‍तु कभी-कभी रोग की भीषणता के कारण कठिन लीवर (यकृत) दोष उत्‍पन्‍न हो जाता है।
बी प्रकार का पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) ज्‍यादा गम्‍भीर होता है इसमें जटिलताएं अधिक होती है। इसकी मृत्‍यु दर भी अधिक होती है।
उपचार:-
रोगी को शीघ्र ही डॉक्‍टर के पास जाकर परामर्श लेना चाहिये।
बिस्‍तर पर आराम करना चाहिये घूमना, फिरना नहीं चाहिये।
लगातार जाँच कराते रहना चाहिए।
डॉक्‍टर की सलाह से भोजन में प्रोटिन और कार्बोज वाले प्रदार्थो का सेवन करना चाहिये।
नीबू, संतरे तथा अन्‍य फलों का रस भी इस रोग में गुणकारी होता है।
वसा युक्‍त गरिष्‍ठ भोजन का सेवन इसमें हानिकारक है।
चॉवल, दलिया, खिचडी, थूली, उबले आलू, शकरकंदी, चीनी, ग्‍लूकोज, गुड, चीकू, पपीता, छाछ, मूली आदि कार्बोहाडेट वाले प्रदार्थ हैं इनका सेवन करना चाहिये
रोग की रोकथाम एवं बचाव
पीलिया रोग के प्रकोप से बचने के लिये कुछ साधारण बातों का ध्‍यान रखना जरूरी हैः-
खाना बनाने, परोसने, खाने से पहले व बाद में और शौच जाने के बाद में हाथ साबुन से अच्‍छी तरह धोना चाहिए।
भोजन जालीदार अलमारी या ढक्‍कन से ढक कर रखना चाहिये, ताकि मक्खियों व धूल से बचाया जा सकें।
ताजा व शुद्व गर्म भोजन करें दूध व पानी उबाल कर काम में लें।
पीने के लिये पानी नल, हैण्‍डपम्‍प या आदर्श कुओं को ही काम में लें तथा मल, मूत्र, कूडा करकट सही स्‍थान पर गढ्ढा खोदकर दबाना या जला देना चाहिये।
गंदे, सडे, गले व कटे हुये फल नहीं खायें धूल पडी या मक्खियाँ बैठी मिठाईयाँ का सेवन नहीं करें।
स्‍वच्‍छ शौचालय का प्रयोग करें यदि शौचालय में शौच नहीं जाकर बाहर ही जाना पडे तो आवासीय बस्‍ती से दूर ही जायें तथा शौच के बाद मिट्टी डाल दें।
रोगी बच्‍चों को डॉक्‍टर जब तक यह न बता दें कि ये रोग मुक्‍त हो चूके है स्‍कूल या बाहरी नहीं जाने दे।
इन्‍जेक्‍शन लगाते समय सिरेन्‍ज व सूई को 20 मिनट तक उबाल कर ही काम में लें अन्‍यथा ये रोग फैलाने में सहायक हो सकती है।
रक्‍त देने वाले व्‍यक्तियों की पूरी तरह जाँच करने से बी प्रकार के पीलिया रोग के रोगवाहक का पता लग सकता है।
अनजान व्‍यक्ति से यौन सम्‍पर्क से भी बी प्रकार का पीलिया हो सकता है।


होमियोपैथिक में इसका इलाज है 


1-CARDUUS M -Q
2 CHELIDONIUM -Q
3 LYCO Q
4 CARICA .PAPAYA Q
5. CEANANTHUS


उपरोक्त सभी औषधियां suymtoms के आधार पर मरीज़ को लेनी होती है
प्रत्येक  दवा से दस दस बून्द आधा कप गर्म पानी मे तीन बार पिये ।


अगर बच्चो को देना है तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही दें।


नोट:-बिना चिकित्सीय सलाह के कोई दवा नही ले ।


आप हमें समपर्क कर सकते है


Dr SWADESH SONI
BHMS MSW PGNAHI CCH
9827247199
 (WHATESAPP) 
9713216229


MY ONLINE TREATMENT FEE 200

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